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शनिवार, अगस्त 04, 2012

ओशो-OSHO

Osho Ganga : स्‍वामी आनंद प्रसाद 'मानस' दिल्‍ली, नई दिल्‍ली, INDIA स्‍वाध्‍याय का अर्थ है, हमारे भीतर के जो जगत है। चेतना का जो लोक है, उसका निरीक्षण। वहां ठहर कर देखना, अध्‍ययन करना। क्‍योंकि वहां बहुत कुछ घट रहा है। विचार चल रहे है, स्मृतियाँ गतिमान है। कल्‍पनाएं उठ रही है, वासनाएं जग रही है। बहुत भीड़-भाड़ है भीतर, कुंभ का मेला सदा लगा रहता है। उसका उसका निरीक्षण, अवलोकन उसके प्रति जागरूक होना। यह स्‍वाध्‍याय का अर्थ है।
Osho Satsang.org/ओशो सत्‍संग : आनंद प्रसाद, ओशो की किरण जीवन में जिस दिन से प्रवेश किया, वहीं से जीवन का शुक्‍ल पक्ष शुरू हुआ, कितना धन्‍य भागी हूं ओशो को पा कर उस के लिए शब्‍द नहीं है मेरे पास.....अभी जीवन में पूर्णिमा का उदय तो नहीं हुआ है। परन्‍तु क्‍या दुज का चाँद कम सुदंर होता है। देखे कोई मेरे जीवन में झांक कर। आस्‍तित्‍व में सीधा कुछ भी नहीं है...सब वर्तुलाकार है , फिर जीवन उससे भिन्‍न कैसे हो सकता है।
ओशो चिन्तन : "तुम लोगों को देखते हो वे दुखी हैं, क्योंकि उन्होंने हर मामले में समझौता किया है, और वे खुद को माफ नहीं कर सकते कि उन्होंने समझौता किया है। वे जानते हैं कि वे साहस कर सकते थे, लेकिन वे कायर सिद्ध हुए। अपनी नजरों में ही वे गिर गए, उनका आत्म सम्मान खो गया। समझौते से ऐसा ही होता है।"- ओशो
ओशो वाणी :

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